पृष्ठ:पदुमावति.djvu/७११

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२७४] सुधाकर-चन्द्रिका । ५८३ जाति करा कित अउगुन लावसि । बाएँ हाथ राज बरभावसि ॥ भाट नाउँ का मारउँ जौवा । अबहूँ बोल नाइ कइ गौवा ॥ दोहा। तूं रे भाट यह जोगौ तोहि प्रहि कहाँ क संग। कहाँ छरइ अस पावा कहा भण्उ चित भंग ॥ २७४ ॥ = - अउर = अपर = और । जो =जो = यः । भाट - भट = स्तुति करने-वाला । उहाँ वहाँ । हुत = श्रामौत् = था। आगे = अग्रे = सामने । बिनदु विनीय विनय कर। उठा = उत्तस्थौ । रिस रोष = क्रोध। लागे = लग्ने = लगने पर। श्राहि = अस्ति = है ईसुर = ईश्वर =भगवान या महादेव। कद कौ। कला = अंश = अवतार। सब = सर्व। राखहिँ =राखद् (रक्षति) का बहु-वचन रखते हैं। अरगला = अर्गला=अगडी अवरोधक i= बन्धन । मौंचु -मृत्यु = मौत। भापनि = अपनी = आत्मनः । दौमा दौस = देखद् (पश्यति) = देखता है। ता सउँ = तिल से = उम से । कउनु = को नु = कौन। कर = कुर्यात् करे। रिस = रोषेण। रोमा रोष = क्रोध। भप्रउ = बभूव हुई। रजाप्रसु = राजाज्ञा = हुक्म। गंधरब-सेनी = गन्धर्व-सेनौ = गन्धर्व-सेन की। काह = किम् = क्या। चढा= चढद् ( उच्चलति ) का भूत-काल, प्रथम-पुरुष, एक वचन । निसेनौ निश्रेणौ = मौढौ। काहे = कथं वा किमर्थम् । अनबानौ = अनुचितवाणी = कुवाणी, वा अणुवाणी = छोटी बोली। अस = एतादृश = ऐसौ। धरई धरति = धरता है। बिटंड: वितण्डावाद = बखेडा। भटंत भटता= भाट का काम। करई = कर करता है= करोति। जाति = ज्ञाति =जात । करा = कला। कित = कुत: = अउगुन= अवगुण = दोष । लावसि = लागयसि = लगाता है। बाएँ =वाम। हाथ = हस्त । राज = राज्ञः = राजा को। बरभावमि = वरं भावयसि = आशीर्वदमि = आशीर्वाद देता है। नाउँ= नाव नाम। का = किम् = क्या । मार= मारूँ = मारयेयम् । जौवा = जीव = प्राण । अबह = अद्यापि = इदानीमपि = अब भौ। नाद् कद = विनमय्य = झुका कर = नवा कर । गौवा ग्रीवा = गला ॥ यूँ = त्वम् = तें। रे= अरे नौच सम्बोधन। जोगी = योगी। तोहि = त्वत्तः = तुझ से। प्रहि = अस्मात् = दूस से। कहाँ = कस्य । क = का। संग = सङ्ग = साथ । क्यौँ। बोल = वद। - 75