पृष्ठ:पदुमावति.djvu/७१९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

२७७] सुधाकर-चन्द्रिका। के वे सहस्र योनि सहस्र आँख हो गई। दूसौ से इस का नाम सहस्राक्ष हुआ। रामायण में इसकी सविस्तर कथा लिखी हुई है ॥ फणिपति शेषनाग के ऊपर प्रलयकाल में भगवान विष्णु लक्ष्मी के साथ सोते हैं । शोष हो ने पतञ्जलि हो कर अष्टाध्यायी का भाष्य और कपिल हो कर योगशास्त्र को बनाया है ॥ अष्टकुलो नाग के लिये इस ग्रन्थ का १६५ पृ० देखो ॥ ऋग्वेद में ग्यारह भूमि के, ग्यारह पाताल के और ग्यारह वर्ग के सब तैंतीस देवता लिखे हैं। पर पुराणों में एक एक के करोड करोड सन्तान मान कर तैंतीस करोड देवता लिखे हैं ॥ ज्यौतिष के मेघमाला नाम ग्रन्थ में मन्दर के उत्तर १२ मेघ, बारह महीने के १२ मेघ, कैलास, विकट, जठर, मेरु, टङ्ग, पारिजात, हिमवान, और गन्धमादन पर्वत पर के दश दश मेघ सब ८४ लिखे हैं। ग्रन्थकार ने एक प्रलय काल का सविर्तक और दूसरा मेघदूत का पुष्यकावर्त ले कर ६ ६ लिखा है, ऐसा जान पडता हैं। श्रीमद्भागवत दशमस्कन्ध २५ अध्याय में लिखा है कि इन्द्र ने प्रलय करने-वाले मांवादिक मेघौं को ले कर व्रज पर चढाई किया था । अग्नि- श्रीमद्भागवत षष्ठस्कन्ध-१८ अध्याय के ३ श्लोक को टौका में 'पञ्च वा एते ऽनयो यच्चितय इति' यह श्रीधर लिखते हैं। इस से पाँच भाग, और चतुर्थ- १ अध्याय के ५६-६० श्लोक- खाहाभिमानिनश्चाग्नेरात्मजांस्त्रौनजीजनत् । पावकं पवमानं च शचि हुतभोजनम् ॥ तेभ्यो ऽनयः समभवंश्चत्वारिंशच पञ्च त एवैकोनपञ्चाशत् साकं पिलपितामहैः ॥ दून से ४६ अग्नि हैं। दोनों के जोडने से ५ ४ अग्नि और स्मार्त्ताग्नि, श्रौताग्नि दो और अधिक करने से ५ ६ अग्नि होते हैं। दून के, तेंतिम देवताओं के सन्तान ऐसा, कोटि कोटि सन्तान मान कर ग्रन्थकार ने ५६ करोड अग्नि को लिखा है। वेदों में और कर्मकाण्डग्रन्थों में अनेक अग्नि के भेद लिखे हैं ॥ पर्वत- पद्म-पुराण के उत्तर-खण्ड के दूसरे अध्याय में लिखा है कि सवा लाख पर्वतों के बीच में वदरिकाश्रम स्थित है। वहाँ नर और नारायण जी रहते हैं। स्कन्ध के 76