६१८ पदुमावति । २५ । सूरी-खंड । [ २७४ ता ते = - तस्मात् उस से । मुख = मुँह । रात = रक्त = लाल । कया = काय = शरीर। पौत = पौली। सो= सः = वह । तहि = तस्य तिम । डर = दर = भय । सवरउँ स्मरामि = याद करता हूँ। बिकरम विक्रम = उज्जयिनी का प्रसिद्ध राजा । बात = वार्ता ॥ जब पची की जीभ में रस रस गया (तब) उस की जीभ में निश्चय कर अमृत बस गया। सेवा करते जौं मालिक क्रोध करे तो उस सेवक के कर्मों का दोष समझना चाहिए। और जिस दोष के न ( होने पर भी वह ) दोष (सेवक के ऊपर ) लगाया गया, दूस लिये (यह सेवक ) डर कर (अपना) प्राण ले कर भागा । (अर्थात् मैं सदा पद्मावती को सुन्दर उपदेश देता था। उस पर भी मेरे ऊपर यह दोष लगाया गया कि यह पद्मावती को बुरी राह दिखला रहा है। दूस डर से मैं अपना जीव ले कर आप के यहाँ से भागा ।) जब पक्षी हुआ तब उस को कहाँ स्थिर रहना, जब डैना है तब जहाँ देखे वहाँ हो पहुँच जाता है। (हे राजा गन्धर्व-सेन मैं श्राप के यहाँ से भाग कर) सातो दीपों को घूम घूम कर देखा, फिर जम्बूद्वीप में जा कर पहुंचा। वहाँ (सब से ) बडा चित्तौर गढ देखा, (वह) बडा राज्य श्राप को बराबरी में पहुंचा है। वहाँ का यह रत्न-सेन राजा है, (उसी को) योगी के वेष में ले कर आया हूँ ।। (मैं) एक निश्चय कर अच्छे फल को लाया हूँ, दूसौ से (मेरा) मुँह लाल है। (और) राजा विक्रम की बात याद कर उमौ डर से (मेरौ ) देह पौली हो गई है। मातो द्वीप के लिये इस ग्रन्थ का ३ पृ० देखो। कथा है कि राजा विक्रम के यहाँ एक शक था। उस ने एक दिन राजा से कहा कि जौं आप छुट्टी देते तो अपने जन्मस्थान को देख पाता और श्राप के लिये एक अमृत-फल भी लेता आता। राजा ने इस बात को सुन सुग्गे को छोड दिया। वह बहुत दिनों तक वन को सैर कर राजा के पास अमृत-फल लिये लौटा। राजा ने विचारा कि दूस को बीज से पैड पैदा करें जिस से अनेक फल पैदा किए जायँ। मालौ को पेंड तयार करने के लिये उस फल को दिया। माली ने दो चार वर्ष में पैड तयार किया । समय पर उस में फल श्राए। राजा ने कहा कि पकने पर मेरे पास लाना । दैव-संयोग से रात को वह फल चू कर जमीन पर आया। उसे एक साँप ने अपनी जीभौँ से अच्छी तरह से चाटा, जिम से वह विष से भर गया। सबेरे
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