२८५] सुधाकर-चन्द्रिका। ६२१ बाँधे हुए रत्न-सेन को छोड कर (लोग राजा गन्धर्व-सेन के पास ) ले पाए । (राजा गन्धर्व-सेन ने) कुल पूछा (और पूछने पर मालूम हुआ कि) प्रतिष्ठित चौहान है, (कवि कहता है कि) रत्न बाँधने से मैला नहीं होता, अर्थात् रत्न जब तक बाँधा रहेगा तब तक छिपा रहेगा खुलने पर उस को कान्ति से झट लोग समझ लेंगे कि यह बढिाँ जवाहिर है। होरा ऐसे दाँत पान के रंग से पके हुए हैं, अर्थात् पान के रंग से सुशोभित हैं, विहंसने पर सभी ने देखा कि (जानों) बिजलौ से भी बढ कर हैं। कानों में मोम से मुद्रा चपकाए हुए हैं, अर्थात् कान फाड के मुद्रा नहीं पहनाई हुई है किन्तु मोम से नकली मुद्रा चिपकाई हुई है, राजा को जितनी बातें ढंपी हुई थौँ सब खुल गई। (राजा गन्धर्व-सेन को आज्ञा से लोग) एक कट्टर (और बडे ) तेज घोडे को ले आए । (राजा गन्धर्व-सेन ने अपने प्रधान से कहा कि कहो) यह (योगी) घोडे को फेरे। (इस बात के सुनते ही राजा रत्न सेन उस घोडे पर) सवार हुआ। (राजा रत्न-सेन ने) उस घोडे को छत्तीसो चाल से फेरा, ( उस फेरने को देख कर) सब सिंहलपुर के रहने वाले बाह बाह करने लगे ॥ (ध्यान कर देखने से प्रसिद्ध हो गया कि) यह बत्तीमो लक्षणों से युत राज- कुमार है, जैसे हजार किरण-वाला सूर्य। (लोग कहने लगे कि) बारह वर्ण-वाले सोने को क्या कसौटी पर कसना (वह तो श्राप चमका करता है) ॥ कथा है कि वसिष्ठ ऋषि के यज्ञ से पृथ्वी को रचा के लिये यज्ञ की अग्नि में चार प्रकार के क्षत्रिय उत्पन्न हुए। चौहान १। प्रमार २। चालुक्य ३ । परिहार ४ । (नागरी-प्रचारिण सभा सौरिज़ नं. ४-८ के रासोमार का ६-८ पृ० देखो)। घोडे को बारह समय पर निपुण सवार कोडे से एक वार धौरे, दो वार कुछ जोर और तीन वार बडे जोर से बारह स्थानों में मारते हैं। इस तरह से घोडे के फेरने में छत्तिम भेद होते हैं दून के जाननेवाला चतुर सवार कहाता है । शिशुपालवध महाकाव्य-पंचममर्ग के दशवें श्लोक को टीका में मल्लिनाथ लिखा है कि- कशा: कशाघातास्तासां चयमुत्तममध्यमाधमेषु यथा संख्यंमृदुसमनिष्ठुर- मकृवित्रिकरणरूपं त्रितयं तस्य विचारः। एतेषु निमित्तेष्वङ्गेष्वेवं ताड्य इति विमर्षः । तदता तज्ज्ञन । । “
पृष्ठ:पदुमावति.djvu/७३९
दिखावट