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पृष्ठ:पदुमावति.djvu/८०

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३२ पदुमावति । १ । असतुति-खंड । [२२ । सङ्ग्राम। जुझारू = योद्धा = युद्ध करने-वाले । अदेस = श्रादेश = आज्ञा। चतरदसा चतुर्दश चौदह। संजोग = संयोग = सङ्ग। बिरिख = वृक्ष । श्राहि = अच्छा । बेधि विद्ध हो कर। बासा = सुगन्ध । कित्तु = कुतः = क्यौँ । मुहम्मद कवि ने चार मित्र को पाया, (जिन से) मिताई (मित्रता) को जोड कर (अपने को) उन को बराबरौ में पहुँचाया ॥ प्रथम मित्र मलिक यूसुफ, पण्डित और ज्ञानौ थे, ( ऐसे वे ज्ञानी थे कि सब से ) पहले बातों का भेद जान जाते थे | फिर दूसरे मतिमान् (बुद्धिमान्) सलार कादिम थे, जिन को बाँह नित्य खाँडे में (तलवार चलाने में) और दान में (दान देने में ) उभडती है अर्थात् उठती है ॥ तीसरे सलोने मियाँ थे, जो अपार वौरों में सिंह थे, और रण-क्षेत्र में खड्ग-योद्धा थे, अर्थात् तलवार से लडने-वाले थे। उन के ऐसा कोई तलवार नहीं चला सकता था ॥ चौथे मित्र शेख बडे थे, जिन को लोग बडा सिद्ध बखानते हैं, जिन के आदेश (आज्ञा) को कर के सिद्ध लोगों ने भी (अपने को) बडा माना ॥ चारो मित्र चौदहो गुण (विद्या) को पढे थे ( चार वेद, छ वेदाङ्ग, पुराण, मौमांसा, न्याय, और धर्म-शास्त्र ये-हौ चौदह विद्या हैं), और ईश्वर ने चारो का एक संयोग (मङ्ग) गढा था, अर्थात् बनाया था ॥ पहली चौपाई में जो लिखा है कि मैं ने उन से मित्रता को जोड कर, अपने को उन को बराबरौ में पहुँचाया, इस से उनके समान होने में अपना सामर्थ्य प्रगट हुआ, उस का निराकरण करने के लिये यह पिछलौ चौपाई लिखा है, कि मेरे में कुछ सामर्थ्य नहीं, कि उन के बराबर होऊँ, किन्तु जो वृक्ष अच्छा (बढियाँ) चन्दन पास होते हैं, वे चन्दन के बास से बिध कर आप चन्दन हो जाते हैं। दूस में चन्दन का गुण है, न कि वृक्ष का। कवि का अभिप्राय है, कि उसी प्रकार उन चारो चन्दन-रूपी मित्रों के पास रहने से, मैं भी उन्हीं लोगों ऐसा हो गया ॥ चारो मित्रों से मिल कर मुहम्मद जो एक चित्त हो गये, अर्थात् उन चारो के चित्त में अपने चित्त को मिला लिया, दूस लिये ( जिन का) इस जग (लोक) में जो साथ निबह गया तो (वे) उस जग में कहाँ बिछुडते हैं, अर्थात् क्याँ बिछुड़ेंगे ॥ २२ ॥ अब प्रसङ्ग से अपने ग्रन्थ के बनाने का स्थान कहते हैं।