पृष्ठ:परमार्थ-सोपान.pdf/१०३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

Pada 7] Moral Preparation. (७) अनुवाद जिसको राम और वैदेही प्रिय नहीं है, उसको कोटि बैरी के समान छोड़ देना चाहिए, चाहे वह परमस्नेही ही क्यों न हो । प्रह्लाद ने पिता को, विभीषण ने भाई को और भरत ने अपनी माता को छोड़ दिया । बलि ने अपने गुरु ( शुक्राचार्य ) और व्रज की स्त्रियों ने ( अपने ) पतियों को छोड़ दिया । ( तो भी ) जगत में मंगलकारी हुए । ( जब तक ) राम के स्नेह से नाता मानते हैं, तत्र तक ही वे सुहृद और सुसेव्य होते हैं । वह अंजन किस काम का है, जिस से आँखें फूट जाएँ। अधिक कहाँ तक कहूँ । तुलसीदास कहते हैं, कि वही सब प्रकार से अपना है, पूज्य है और प्राण से प्यारा है, जिसके द्वारा राम से स्नेह होता है, यही हमारा मत है 1. . ४५