पृष्ठ:परमार्थ-सोपान.pdf/११२

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५४ परमार्थसोपान [Part I Ch. 2 (Contd. from p. 52) दोहा : - जोग अगिनि करि प्रगट तब, कर्म सुभासुभ लाई बुद्धि सिरावै ज्ञान घृत, ममता मल जरि जाइ ॥ तत्र विग्यान निरूपिणी, बुद्धि विसद घृत पाइ । चित्त दिया भरि धरै दृढ़, समता दिअटि बनाइ ॥ तीन अवस्था तीन गुण, तेहि कपास ते काढ़ि । तूल तुरीअ संवारि पुनि, वाती करै सुगाढ़ि ॥ सोरठाः यहि विधि से दीप, तेज- रासि विज्ञानमय । जातहिं जासु समीप, जरहिं मदादिक सलभ सब ॥ चौपाई :- सोऽहमस्मि इति वृत्ति अखण्डा, दीपसिखा सोइ परम प्रचण्डा । आतम अनुभव सुख सुप्रकासा, तत्र भव-मूल भेद-भ्रम नासा ॥