पृष्ठ:परमार्थ-सोपान.pdf/११३

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Pada 11] Moral Preparation. ५५ (Contd. from p. 53) तत्र योग रूपी अग्नि को प्रकट कर उसमें शुभाशुभ कर्मरूप ईंधन डाले । जब ममता रूपी मल जल जाय, तब बुद्धि, ज्ञान रूपी घृत निकाल ले | तब विज्ञान निरूपिणी बुद्धि विशद घृत को पाकर उस से चित्तरूपी दीपक को भरे और समता रूपी दृढ़ दीवट बना कर उसपर रक्खे | तीन अवस्था रूप तीन गुणों को ( अंतःकरणरूपी ) कपास से निकाल कर तुरीय रूपी तूल से उन को ठीक कर के गाढ़ी बत्ती बना ले | इस प्रकार विज्ञानमय तेजराशि दीप जलावे | जिसके समीप जावे ही सब मदादिक शलभ जल जावें । " सोऽहमस्मि " ऐसी जो अखण्ड वृत्ति है, वही परम प्रचण्ड दीप शिखा है । (जब) आत्मानुभव - सुख- रूपी सुप्रकाश होता है तब भवमूल भेदरूपी भ्रम का नाश हो जाता है ।