पृष्ठ:परमार्थ-सोपान.pdf/११४

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५६ परमार्थसोपान [Part I Ch. 2 12. THE JEWEL OF BHAKTI, पावन पर्वत वेद पुराना । रामकथा रुचिराकर नाना ॥ मर्मी सज्जन सुमति कुदारी | ज्ञान विराग नयन उरगारी ॥ भाव सहित खोजइ जो प्रानी । पाव भगति मणि सब सुख खानी ॥ रामभगति चिन्तामणि सुन्दर । बसइ गरुड़, जाके उर अन्तर || परम प्रकासरूप दिन राती । नहि कछु चहिय दिया घृत बाती ॥ मोह दरिद्र निकट नहिं आवा । लोभ बात नहिं ताहि वुझावा ॥ प्रबल अविद्या तम मिट जाई । हारहिं सकल सलभ समुदाई || खल कामादि निकट नहिं जाहीं । बस भगति जाके उर माहीं ॥ गरल सुधा सम अरि हित होई तेहि मणि बिनु सुख पाव न कोई || ( Contd. on p. 58 )