पृष्ठ:परमार्थ-सोपान.pdf/११८

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६० परमार्थ सोपान [Part I Ch. 2 13. JNANA AS THE TRANSCENDENCE OF APPEARANCE. गोपी सुनहु हरि - सन्देस ॥ टे ॥ को पूरण ब्रह्म ध्यावी, त्रिगुण मिथ्या भेस ॥ १ ॥ मैं कयौं सो सत्य मानहु, त्रिगुण डारौ नास । पञ्च त्रय गुण सकल देही, जगत ऐसो भास ज्ञान विनु नर मुक्ति नाहीं, यह विषै संसार | रूप रेख न नाम कुल गुण, 113 11 वरण अवर न सार ॥ ३ ॥ मात पितु कोइ नाहिं नारी, जगत मिथ्या लाइ । सूर सुख दुःख नाहिं जाके, भजो ताको जाइ 118 11