पृष्ठ:परमार्थ-सोपान.pdf/१२५

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Pada 16] Moral Preparation. ६७ (१६) अनुवाद. ( हे शबरी, ) नवधा भक्ति तेरे प्रति कहता हूँ । सावधान होकर सुन और हृदय में रख । प्रथम भक्ति सन्तों का संग है । दूसरी भक्ति मेरी कथा के प्रसंग में रति है । तीसरी भक्ति गुरु के पदपंकज की मान रहित सेवा है । चौथी भक्ति यह है कि कपट तज कर मेरे गुणगण का गान करे | पंचम भक्ति जो वेद में सुप्रकाशित है वह मुझ में दृढ़ विश्वास के साथ मन्त्र जाप है । दम, शील और विरति की बहुत सी क्रियाएँ करना और सज्जन धर्मों में निरत होना छठवी भक्ति है। सातवी भक्ति जगत को समदृष्टि से मन्मय देखना और सन्त को मुझ से अधिक समझना । यदृच्छालाभ में सन्तोष करना, स्वप्न में भी परदोष न देखना आठवीं भक्ति है । नवीं भक्ति सब के साथ सरल और छलहीन होना और मेरे भरोसे हृदय में न हर्प और न दैन्य लाना । हे शवरी, इन नवों में से जिसकी एक भी ( भक्ति ) होगी, चाहे वह स्त्री, पुरुष, चर, अचर, कोई भी हो वही मेरा अतिशय प्रिय है । है शबरी, तेरी भक्ति तो सब प्रकार से ढ़ है ।