पृष्ठ:परमार्थ-सोपान.pdf/१२७

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Pada 1] The Relation of God. ६९ (१) अनुवाद. कहाँ जाऊँ ? घर में ही रंग लग गया है । मेरे चित्त ने चंचलता छोड़ दी है, और मन पंगु बन गया है । एक दिन मन में लहर उठी कि अति सुगन्ध चन्दन की लकड़ी घिस कर ब्रह्म के स्थान पर पूजन के लिए चलूँ, तो गुरु ने ब्रह्म मन ही में बताया । जहाँ जाओ, वहाँ जल और पापाण ही हैं । हे भगवन् ! सब में तू पूर्णरूप से समाया है, वेद-पुराण आदि ढूँढ़ कर देखा तो ज्ञात हुआ कि, वहाँ तो तब जाऊँ जब तू यहाँ न हो । हे सद्गुरु ! मैं अपने को तुझ पर निछावर करता हूँ, जो तूने मेरे सकल भ्रम निःशेष काट दिए हैं । रामानन्द स्वामी ब्रह्म में रममाण हैं। गुरु के शह ने कोटि कर्म काट दिए हैं ।