पृष्ठ:परमार्थ-सोपान.pdf/१५१

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Pada 12] The Relation of God. ९३ (१२) अनुवाद. हे भगवन्, अब रक्षा करो। मैं अनाथ होकर द्रुम की डाली पर बैठी हूँ । पारधि ने बाण संधान किया। उसके डर से मैंने निकलना चाहा, ऊपर श्येन मँडराता था । दोनों प्रकार से दुख हुआ । हे कृपानिधि, प्राण की कौन रक्षा करे ? स्मरण करते ही अहि ने पारधि को डस लिया और तीर श्येन को लग गया। सूरदास कहते हैं कि हे कृपानिधान ! आपके गुणों का कहां तक वर्णन करूं ? आपकी जय जयकार हो !