पृष्ठ:परमार्थ-सोपान.pdf/१५२

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१४ - परमार्थसोपान [ Part I Ch. 3 13. LIKE A SPARROW ON THE HIGH SEAS, I CAN PERCH ONLY ON THY MAST, O' MY BARGE! मेरो मन अनत कहां सुख पावै ॥ दे ॥ जैसे उड़ि जहाज को पंच्छी, फिरि जहाज पर आ कमलनैन को छाँड़ि महातम, और देव को ध्यावै । परम-गंग को छाँड़ि पियासो दुरमति कूप खना जिहि मधुकर अम्बुज - रस चाख्यौ, क्यों करील फल भावै । सूरदास प्रभु कामधेनु तजि, छेरी कौन दुहावै ॥ १ ॥ ॥ २ ॥, ॥ ३॥