पृष्ठ:परमार्थ-सोपान.pdf/१६५

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Pada 1] Pilgrimage १०७ (१) अनुवाद. बिना गुरु के मार्ग कौन बतावे १ यमघाट बड़ा विकट है। जीवन की नदी के बीच भ्रान्ति की पहाड़ी है और अहंकार का ऊंचा स्तम्भ है। काम क्रोध रूपी दो पर्वत खड़े हैं । नाना लोभ रूपी चोरों का जमाव है । मद और मत्सर का मेव बरसता है । माया रूपी पवन प्रबलता से बह रहा है । कवीर कहते हैं कि हे साधो, यह घाट किस प्रकार तरा जाय ?