पृष्ठ:परमार्थ-सोपान.pdf/१८०

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१९२ परमार्थसोपान [Part I Ch. 4 8. ON INTENSE CONCENTRATION. या विधि मन को लगावै, मन के लगाए प्रभु पावै जैसे नटवा चढ़त बाँस पर, ढोलिया ढोल बजावै । अपना बोझ धेरै सर ऊपर, ॥ टे ॥ सुरति बरत पर ला 11 2 11 जैसे भुवंगम चरत वनहिं में, ओस चाटने आवै । कबहूँ चाटै कहूँ मनि चितवै, मनि तजि प्रान गवावे जैसे सती चढ़ी सत ऊपर, अपनी काय जरावै । मात पिता सब कुटुम्ब तियागे, 'सुरति पिया पर लाबै धूप दीप नैवेद अरगजा, ज्ञान कि आरत लावै । कहै कबीर सुनो भाई साधो, फेर जनम नहिं पा ॥२॥