पृष्ठ:परमार्थ-सोपान.pdf/१८१

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Pada 8] Pilgrimage- १२३ (८) अनुवाद. इस प्रकार मन को लगाओ, कि जिसके लगाते ही प्रभु को पाओगे । जैसे नट, ढोलिया के ढोल बजाते समय बाँस पर चढ़ता है और अपने सिर पर बोझ लिये हुए भी अपना ध्यान तन्मयता से रस्सी पर लगाता है । जैसे जंगल में चरते समय सर्प ओस चाटने के लिये आता है तो कभी ओस चाटता है, कभी मणि को देखता है। क्यों कि मणि से बिछुड़ने पर वह प्राण गँवा देगा। जैसे सती आवेश में आकर चिता में अपनी काया जलाने आती है और माता पिता तथा सव कुटुम्ब को त्याग कर एक प्रियतम पर ध्यान लगाती हैं । कबीर कहते हैं कि हे साधो, जो धूप दीप नैवेद्य अरगजायुक्त ज्ञान रूपी आरती जलायेगा, वह पुनर्जन्म नहीं पायेगा ।