पृष्ठ:परमार्थ-सोपान.pdf/१८७

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Pada 11] Pilgrimage १२९ (११) अनुवाद. जुलाहे ! छेद को रहने न देना । सब गाँठो (साँठों) को निकाल देना | . प्रेम और प्राण के धागे लगा कर आत्म-तत्व रूपी दीपक के प्रकाश में एक चित्त होकर जुलाहे ने बुनना आरम्भ किया । ज्ञान रूपी राछ ताने से भर लिया और नामरूपी नली बाने से भर कर जुलाहा ताना बाना बुनने लगा | अन्तर्भाव रूपी रंग से लाल होकर जीव रूपी जुलाहा परम तत्व से मतवाला हो गया । सब जुलाहों का शिरोमणि होकर भी नम्रता से बुनते हुए, सँधा हुआ सूत टूटने नहीं देता । सदा लौ लगाकर सचेत रहता है । ज्योंही टूटता है, त्योंही जोड़ देता है। इस प्रकार बड़ा गाढ़ा और घना कपड़ा बुनकर साई के चित्त को रिझाता है। दादू कहते हैं कि जुलाहा साईं के संग से इस युग में फिर लौटकर नहीं आवेगा ।