पृष्ठ:परमार्थ-सोपान.pdf/१९९

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Pada 15] Pilgrimage १४१ (१५) अनुवाद. मैंने सुना है कि राम निर्बल के बल हैं। पिछले सन्तों की साक्षी देता हूँ कि राम ने अटके हुए काम सँवारे हैं । जब तक गज ने अपना वल लगाया, तब तक थोड़ा भी काम नहीं होने पाया । जब निर्बल होने पर अन्तर्बल से राम को पुकारा तब आधे नाम पर ही राम को आना पड़ा | पहला बल आत्मबल, दूसरा तपचल, तीसरा बाहुबल और चौथा धनबल है । सूरदास कहते हैं कि किशोर कृष्ण की कृपा से ही सब बल प्राप्त होता है; हारे हुए को हरिनाम ही एकमेव बल है ।