पृष्ठ:परमार्थ-सोपान.pdf/२००

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१४२ परमार्थसोपान [ Part I Ch. 4 16. KABIR ON SEPARATION FROM GOD, प्रीति लगी तु नाम की, पल विसरै नाई । नजर करौ मेहर की, मोहिं मिलौ गुसाई ॥ १ 11 2 11 विरह सतावै हाय अब, जिव तड़पै मेरा | तुम देखन को चाव है, प्रभु मिलौ सवेरा 113 11 नैना तरसे दरस को, पल पलक न लागै । दर बन्द दीदार का, निसि-वासर जागै ॥ ३ ॥ जो अब के प्रीतम मिले, करूँ निमिप न न्यारा । अब कबीर गुरु पाइया, मिला प्रान पियारा ॥ ४ ॥