पृष्ठ:परमार्थ-सोपान.pdf/२०१

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Pada 16] Pilgrimage. १४५ (१६) अनुवाद. ( हे स्वामी ) तुम्हारे नाम की प्रीति लगी है । एक पल भी तुम्हारा नाम नहीं विसरता । हे गोसाँई, कृपादृष्टि करो और मुझ से मिलो । विरह सता रहा है । हाय ! अब जीव तड़प रहा है । तुम्हें देखने की उत्कण्ठा है । अत एव हे प्रभु, शीघ्र ही मुझे मिलो । नेत्रों को दर्शन की प्यास लगी है । एक पल भी पलक नहीं लगते । दीदार का द्वार बन्द है । मैं रात दिन जाग रहा हूँ। अगर इस बार प्रिय- तम मिल जाय तो क्षणमात्र भी अलग नहीं करूंगा । गया। अब कबीर गुरु को पा गया और प्राण प्यारा मिल