पृष्ठ:परमार्थ-सोपान.pdf/२१८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

१६० परमार्थ सोपान [Part I Ch. 5 7. GORAKHANATH'S DESCRIPTION OF HIS SPIRITUAL EXPERIENCE. शून्य शिखर में सुरत लगाय देखो, निज में अलख बसाय बस्ती । ताल मृदंग पवपवली बजत है. हर दम पर नौबत झड़ती इडा पिंगला चवर डुलावे, सुखमनिया सेवा करती | चन्द सुरज दोउ दीवटि जलते, सत्त सुकृत दोउ फिरे गश्ती 11 2 11 || 3 || सप्त सागर धनि करे असनान, जहँ मोतियन की बरपा झड़ती । विरला सन्त कोइ पहुँच गया, निगुरे की मिले नहीं गिनती ॥ ३ ॥ नाथ मछिन्दर दास तुम्हारो, गोरख गरीब मेरी कौन गिनती । सबद सबद में आप विराजे, तुझ बिन दुजी न देखे सुरती ॥ ४ ॥