पृष्ठ:परमार्थ-सोपान.pdf/२३४

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tok परमार्थसोपान [ Part I Ch. 5 14. CHARANDAS ON THE PHYSIOLOGICAL AND MORAL EFFECTS OF HEARING THE ANAHAT SOUND. जब तें अनहत घोर सुनी इन्द्री थकित गलित मन हुआ, आसा सकल भुनी घूमत नैन शिथिल भइ काया, अमल जो सुरत सनी रोम रोम आनन्द उपज करि, 11211 11 2 11 ॥ २ ॥ आलस सहज भनी, 11 3 11 मतवारे ज्यों सवद समाये, अन्तर भींज कनी 11811 करम भरम के बन्धन छूटे, दुविधा विपति हनी ॥५॥ आपा बिसरि जगत कूँ चिसरो, कित रही पांच जनी 11 & 11 लोक भोग सुधि रही न कोई, भूले ज्ञान गुनी ॥ ७ ॥ हो तह लीन चरन ही दासा, कह सुकदेव मुनी || < || ऐसा ध्यान भाग सूँ पैये, चदि रहै सिखर अनी 113 11