पृष्ठ:परमार्थ-सोपान.pdf/२४६

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१८८ परमार्थतोपान [ Part I Ch. 5 20. DADOO ON THE FLAVOURIST AS BECOMING ONE WITH THE FLAVOUR ITSELF. रामरस मीठा रे, कोड, पीवै साधु सुजाण । सदा रस पीवै प्रेम सों, सो अविनासी प्राण ॥ १ ॥ इहि रस राते नामदेव, पीपा अरु रैदास । पित्रत कवीरा ना थक्या, अजहूँ प्रेम पियास 113 11 सिधि साधक जोगी जती, सती सबै सुकदेव । पीवत अन्त न आवई, ऐसा अलख अभेव यहु रस मीठा जिन पिया, सो रस ही रहा समाय । • मीठे मीठा मिलि रहा, दादू अनत न जाइ ॥ ३ ॥ 11811