पृष्ठ:परमार्थ-सोपान.pdf/२४७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

Pada 20] Ascent. १८९: (२०) अनुवाद. राम रस मीठा है । कोई ज्ञानी साधु ही उसका पान करता है । सदा जो प्रेम से रामरस पीता है, वह प्राणी अविनाशी है | नामदेव, पीपा और रैदास इसी रस में अनुरक्त थे । कवीर इसको पीते-पीते न थका; आज भी उसको प्रेम की प्यास है। हे शुकदेव ! सिद्ध, साधक, योगी, यती और साध्वी आदि सभी ने उसको पीया पर उसका अन्त नहीं पाया, वह ऐसा अलक्ष्य और भय रहित है । जिन्होंने इस मीठे रस का पान किया, वे इसी रस में समा गए । मीठा मीठे में मिल गया । अब दादू अन्यत्र कहाँ जाएगा ?