पृष्ठ:परमार्थ-सोपान.pdf/२४८

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१९.० परमार्थसोपान [ Part I Ch. 5 21. KABIR ON THE DISTILLATION OF THE SPIRITUAL WINE. है कोइ सन्त सहज सुख उपजै, जप तप देउँ दलाली । एक बूँद भरि देइ राम रस, ज्यं भरि देइ कलाली ॥ १ ॥ काय कलाली लाहनि करिहूँ, गुरू सबद गुड़ कीन्हा । कामौ क्रोध मोह मद मत्सर, काटि काटि कस दीन्हा ॥ २ ॥ J भुवन चतुरदस भाटी पुरई, ब्रह्म अगिनि परजारी । मूँदे मदन सहज धुनि उपजी, सुखमन पोतनहारी नीझर झरै अमीरस निकसै, तिहिं मदिरावल छाका । ॥ ३ ॥ कह कबीर यह वास विकट अति, ज्ञान गुरू ले बाँका 118 11