पृष्ठ:परमार्थ-सोपान.pdf/२४९

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Pada 21] Ascent १९१ (२१) अनुवाद. क्या कोई ऐसा सन्त है जो सहज सुख उपजा सके ? जिसको मैं दलाली में जप तप हूँ। जैसे कलाली काँस का पात्र भर कर देती है, वैसे ही केवल एक बूँद तो रामरस दे ! काया को कलाली कि लाहनि किया । गुरु के शब्द को गुड़ किया । काट-काट कर काम, क्रोध, मोह, मद, मत्सर का रस उसमें छोड़ा । चतुर्दश भुवनों की भट्टी पूर ली । ब्रह्मा प्रज्वलित की । मदन को मूँदा, जिससे सहज ध्वनि उत्पन्न हुई । सुषुम्ना को पोतनहारी किया । निर्झर झरने लगा और अमृत रस निकलने लगा । उस मदिरा- वलि से मस्त हुआ कवीर कहता है कि इस प्रकार की रहनी अत्यन्त विकट है । जो गुरु से ज्ञान लेता है, वही इस में बाँका हो सकता है | | 1 1