पृष्ठ:परमार्थ-सोपान.pdf/२५०

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१९२ परमार्थसोपान [Part 1 Ch. 5 22. ON THE MADNESS OF INTOXICATION THROUGH GOD VISION. दरस दिवाना बावला, अलमस्त फकीरा । एक अकेला है रहा, अस्मत का धीरा 11 2 11 हिरदे में महबूब है, हर दम क्या प्याला । पीवेगा कोई जौहरी, गुरुमुख मतवाला ॥ २ ॥ पियत पियाला प्रेम का, सुधरे सब साथी । आठ पहर झूमत रहे, जस मैगल हाथी 11 3 11 बन्धन काट मोह का, बैठा निरसंका । वाके नजर न आता, क्या राजा क्या रंका ॥ ४ ॥ धरती तो आसन किया, तम्बू असमाना । चोला पहिरा खाक का रहा पाक-समाना ॥ ५॥ सेवक को सतगुरु मिले, कछु रहि न तबाही | कह कबीर निज घर चलौ, जहँ काल न जाही ॥ ६ ॥