पृष्ठ:परमार्थ-सोपान.pdf/२५१

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Pada 22] A s c e n t. १९३ (२२) अनुवाद. . दर्शन से दिवाना हुआ वह चावला फ़कीर बिलकुल मस्त हो गया है । स्थितधी एक वह अकेला रहता है । हृदय में श्वास श्वास का प्याला - ईश्वर हमेशा उपस्थित है । कोई गुरुमुख जौहरी ही उसको पी कर मतवाला होता है । प्रेम का प्याला पीता तो वह है पर सब साथी सुधर जाते हैं । मदगल हाथी की तरह वह आठों पहर झूमता है और मोह का बन्धन काटकर निःशंक बैठा रहता है । क्या राजा, क्या रंक, यह उसकी दृष्टि में नहीं आता । ( उसने ) धरती को आसन किया, आसमान को तम्बू बनाया और खाक का चोला पहिना । पाक होकर वह ईश्वर में समा रहा है । सेवक को सद्गुरु मिलता है, तब कुछ वरवादी नहीं रहती । कबीर कहते हैं, जहाँ काल का प्रवेश नहीं उस अपने घर को चलो |