पृष्ठ:परमार्थ-सोपान.pdf/२५८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

२०० परमार्थसोपान [ Part I Ch. 5 26 KABIR ON LIVING IN SAHAJA SAMADHI. साधो सहज समाधि भली ॥ टे ॥ गुरु प्रताप जा दिन से जागी, दिन दिन अधिक चली 11 2 11 आँख नमूद कान न रुँधों, तनिक कष्ट नहि धारौं । खुले नैन पहिचानौँ हँसि हँसि, सुन्दर रूप निहारों ॥ २ ॥ सबद निरन्तर से मन लागा, मलिन वासना त्यागी । ऊठत बैठत कबहु न छूटै, ऐसी तारी लागी ॥ ३ ॥ कह कबीर यह उन्मनि रहनी, सो परगट करि गाई | दुख सुख से कोइ परे परमपद, तेहि पद रहा समाई ॥ ४ ॥