पृष्ठ:परमार्थ-सोपान.pdf/२६१

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Pada 27] Ascent. (२७) अनुवाद. २०३ मेरा गुरु जो बड़ा सिद्ध है, उसने मुझको चिन्ह बतला दिया । उससे मैने मूक हो कर अपना स्थिर निवास प्राप्त किया । पञ्चभौतिक शरीर में मैं अकेला ही बैठा रहा । वहाँ पर नाना प्रकार के रंग देखकर, बाजा सुन लिया । ' तत्त्वं ' महावाक्य मुझे बताया गया, जिससे मैं जागृत हुआ । नाद, विन्दु की कला जान कर मैं बेपरवाह हुआ । लाल शून्य पर सफेद शून्य देख लिया । उस पर तीसरा काला शून्य है, जिसको सुपुप्ति कहते हैं । उसके ऊपर चौथा शून्य, जो तुर्यावस्था का है, उसका बड़ा उजाला गुरु ने बतलाया । उस उन्मनि अवस्था में मैंने स्वामी को जगाया और उसको समझ लिया । आनन्द सागर में डूब कर बन्दा खुदा " के भेद को भूल गया । दो नाम का एक नाम होकर आवागमन मिट गया । पूर्णब्रह्म कैसा है इसको वही समझता है, जो लाल, सफ़ेद और काले पर नीला शून्य देखता है । मौला कहते हैं कि यह बात समझले कि जो गुरु को पा लेता है और जो रस का प्याला लेना जानता है वही ईश्वर को प्राप्त कर सकता है ।