पृष्ठ:परमार्थ-सोपान.pdf/३३६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

२७८ परमार्थसोपान [Part II Ch. 5 16. KABIR BATHES WHEN THE STORM OF THUNDER AND LIGHTNING SENDS DOWN AMBROSIA. गगन गरजि बरसे अमी, बादल गहिर गभीर | चहुँ दिसि दमके दामिनी, भीजत दास कबीर ॥ 17. THE INSATIABILITY OF THE THIRST FOR THE ENJOYMENT OF GOD'S SPLENDOUR. धरनी पलक परै नहीं, पिय की झलक सुहाय । पुनि पुनि पीवत परम रस, तबहूं प्यास न जाय ॥ 18. SPEECH BECOMES FRAGRANT IN CONSEQUENCE OF THE ECSTATIC STATE पिञ्जर प्रेम प्रकासिया, अन्तर भया उजास | सुख करि सूती महल में, बानी फूटी वास ॥