पृष्ठ:परमार्थ-सोपान.pdf/३३७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

Dohas 16-18] Ascent २७९ (१६) अनुवाद. आकाश में घने बादल गम्भीरता से गरजते हैं और अमृत रस को बरसाते हैं। चारों दिशाओं में बिजली दमकती है और कबीरदास भीग रहे हैं । (१७) अनुवाद. (१) धरनीदास कहते हैं कि पलक मुँदते नहीं क्योंकि प्रिय की झलक यति शोभन है । परम प्रेम रस बार बार पीता हूँ, तब भी प्यास नहीं बुझती । (२) पृथ्वी की ओर पलक नहीं झुकते, ( क्यों कि ) प्रिय की झलक अतिशोभन है । परम प्रेम-रस बार बार पीता हूँ, तब भी प्यास नहीं बुझती । (१८) अनुवाद. पिज्जर में प्रेम प्रकाशित हुआ । अन्तर में उजाला । हो गया । ( जीवात्मा ) महल में सुख से सो गई । वाणी में वास फूट पड़ा ।