पृष्ठ:परमार्थ-सोपान.pdf/४२४

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74 परमार्थसोपान - टिप्पणी [ Part I Ch. v 33 कहिये की = कथनीय, श्रेय की । कहूँ रे जो कहिये की होइ - (१) मैं तो श्रेय की बात ही कह रहा हूँ; ( २ ) अगर कथनीय बात हो तब तो कहूँ ? The first seems preferable according to the context. ना कोइ जानै ना कोई मानै - " cf. ऊर्ध्वबाहुर्विरोम्येषः न च कश्चिच्छ्रणोति माम् । धर्मादर्थश्च कामश्च स धर्मः किं न सेव्यते ॥" बालना = बिगाड़ना । लोभ के घाले अपनपौ = अपने को अपनापन = (२) सुध, होश । गँचार भौजल = = ग्रामीण, देहाती । = — व्यास महाभारत । लोभोपहत । B. G. (१) आत्मभाव, आत्मस्वरूपः 1. The ocean of life; 2. Another meaning suggested is pl. of भुजायें. ( भुजा का अपभ्रंश भोज + पूर्वी भाषा में बहुवचन के लिये प्रयुक्त 'ल' ) । भोजल अधपर थाकि रहे हैं बड़े बहुत अपार - Many have been stranded in mid-ocean and many drowned. = दया करके | ( May be taken with आज्ञा दई or with काहूँ कूँ समुझाइ The first seems to be better. ) दया करि हान्यो = हार गया । / मैं तड़प तड़प कर हार गया, सुखसागर मध्य नहाने को । "" Note:-cf. for the whole poem, 66 वचनाचा अनुभव हाती । बोलविती देव मज ॥ परि हे न कळे अभाविका । जड लोका जीवासी ॥ अश्रुत ह प्रासादिक । कृपाभीक स्वामीची ॥ तुका म्हणे वरावरी । जातो जरी सांगत ॥ 34 — तुकाराम | अजय जड़ी - - Miraculous root or herb ( viz. 'नामस्मरण' ) बंगला viz. मन or अन्तःकरण.