पृष्ठ:परमार्थ-सोपान.pdf/४६१

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Dohas 13-18] Ascent 111 ज्ञानेश्वर ) of devotional perspiration or tears; Tears either of non attainment or of greatful- Greatfulness either of reverence or of uess. revival of associations. Note: cf. ज्ञानेश्वर: - " चित्त चाकाटलें आटु घेत । चाचा पांगुळली जेश्रींची तेथ । आपाद कंचुकित | रोमांच आले ॥ अर्धोन्मीलित डोळे । वर्षतीति आनंदजळें । आंतुलिया सुखोमचेनि वळें । वाहेरि कांपे ॥ मैं आघवाची रोममूळीं । आली स्वेदकणिका निर्मळी । लेइला मांतियांची कडियाळी | आवडे तैसा ॥ Also cf. 66 आंतु आनंदा चेहरे जाहलें । वाहेरी गात्रांचें वळ हारमोनि गेलें । आपाद पांगुतलें । पुलकांचलें ॥ वार्षिये प्रथमदशे । वोहळल्या शैलांचे सर्वांग जैसें । विरूदे कोमलांकुरों तैसें । रोमांच जाहले । शिवतला चंद्रकरों । सोमकांत द्राव धरी । तैसिया स्वेद- कणिका शरीरीं । दाटलिया || धग्नी = (१) 17 ( १ ) कवि का नाम, ' धरनीदास '; ( २ ) पृथ्वी | इलेपालंकार । पलक = ( 1 ) Eyelid ; ( 2 ) By Synoedoche, eye. सुहाय = सुभग, शोभन । परम रस — Another reading is प्रेम रस. - तवहुँ प्यास न जाय . cf. देखना | पिंजर प्रेम प्रकासिया = नयन को लगी प्यास, अब तो साहेब 18 (१) पिंजर में प्रेम प्रकाशित हुआ । (२) पिंजर प्रेम से प्रकाशित हुआ । ( The first meaning is better because प्रेम, उजास and वास are nominatives. )