पृष्ठ:परमार्थ-सोपान.pdf/४८६

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ક परमार्थ सोपान गोरखनाथने भी नी, चा, बोलिया आदि लिखे हैं । फिरभी तत्सम शब्दों का आपने अच्छा प्रयोग किया है यद्यपि हैं प्राकृत अपभ्रंश शब्द भी । महर्षि गोरखनाथने उच्च शैवमत निकालकर बौद्ध सहजि - यावालों को अपने मतमें ले लिया । इन के अघोर पन्थ एवं वाम- मार्गीलोग शायद इसी के फल हों । गोरखपन्थ में वेदान्तकी विभूतिया एवं शिव की उपासनावाली ऐसी प्रणातियां भी थी। जो इस मतको लोक में ग्राह्य बनाती थीं । ये महात्मा हठयोग का आधार लेते हैं । ईश्वर प्राप्ति आपका लक्ष्य है। तत्कालीन समाजपर इस मत का प्रभाव अच्छा पड़ा । इसमें उपासना तथा तंत्रवाद दोनों है । कर्म- काण्ड तथा कुछ शारीरिक क्रियायें भी हैं और यह योग से सम्बद्ध है । इसमें विवेकवाद तथा दार्शनिक विषयोंका अभाव सा है । यह विशेषतया साधुवों में प्रचलित है। गोरखपूरके इधर उधर बहुतेरे गोरखपन्थी हैं । और कुछ महाराष्ट्र प्रान्त में भी । इसमें कुछ बाममार्गी भी है । आपने तांत्रिक शैव मत को स्वच्छ करके उसे दक्षिण मार्गकी ओर लाने का प्रयत्न किया, तथा शंकरस्वामी के निर्गुण शैववादको कुछ सगुणत्व दे कर अधिक लोकोपयोगी बनाया है । यद्यपि ऐसा करने में तार्किक शुद्धता की कुछ कमी हो गई है । इस पन्थ का प्रचार राजस्थान और पंजाब में भी है । मत्स्येन्द्रनाथ ( मुछन्दरनाथ ) इनके गुरु थे। उनकी भी गणना ८४ सिद्धों में होती थी। क्यों कि गोरखनाथ ८४ सिद्धों में थे ही और यह उन के गुरु थे । मुछन्दर तथा गोरख के गुरु-शिष्यवाले एका- धिक जोड़े समझ पड़ते हैं । गोरख तो सिद्ध हो गये, किन्तु मुछन्दर लोकजाल में पड़े रहे किन्तु अन्त में शिष्य गोरख के प्रयत्नों और प्रभावसे सिद्ध हुये । कुछ कविता मुछन्दर नाथ की भी मिलती है । इस ग्रन्थमें उनका उदाहरण पृष्ठ १३२ पर है ।