पृष्ठ:परमार्थ-सोपान.pdf/४९४

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२२ परमार्थ सोपान [२३] प्रभूदास. प्रभूदास का उदाहरण पृष्ठ २० पर है । इस प्रभूदयाल कायस्थ अजयगढ़ बुन्देलखंडव |लेन सं. १९१५ में ज्ञानप्रकाश ग्रन्थ रचा। [ २४ ] खान खाना अब्दुलरहीम. खान खाना अब्दुलरहीम का जन्म १६१४ में हुवा था । आप सम्राट अकबर के अभिनायक बैरमखाँ के सुपुत्र थे । जब पाटन गुजरात में बैरमखाँ का निधन सं. १६१५ में हुवा, तबसे इनका पालन पोषण स्वयं अकबर ने बड़े प्रेम के साथ किया । समय पर आप उनके मन्त्री तथा महासेनापति भी हुये तथा अकबर के लिये आपने कुछ मुस्लिम शाहियों को भी जीता। अकबर के तृतीय पुत्र दानियाल का विवाह खानखानाकी पुत्री से हुवा। अकबर के राजत्व कालमें आप एक बार राजद्रोही माने जाकर अपमानित हुये तथा धनधान्य से रहित होकर दरिद्रता का जीवन कुछ काल बिताते रहे आपने स्वयं लिखा है :- ये रहीम घर घर फिरें मांगि मधुकरी खाहिँ । धरो धारी छोड़िये वे रहीम अब नाहिं ॥ किन्तु ऐसी दशा में भी कुछ याचक इन्हें दानार्थ घेरते थे और अपने में दानशक्ति के अभाव से ये दुःखित होते थे। आप कहते हैं, तबही लौं जीबोअलो दीवो होय न धीम । जग मैं रहिबो कुचित गति, उचित न होय रहीम ॥ ऐसी अवस्थामें भी कहते हैं कि उचित दान पात्र देख कर एक बार रीवा नरेश से उसे एक लक्ष का दान कराया था। छन्द मांगने का यो है :- चित्रकूट में राम रहे रहिमन अवध नरेस । जेहि पर बिपद परति है सो आवत यहि देस ॥