पृष्ठ:परमार्थ-सोपान.pdf/६६

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परमार्थसोपान [ Part I Ch. 1 4. PHILOSOPHICAL AFFLATUS TO SPIRITUAL LIFE. केशव कहि न जाय का कहिए ? || टे ॥ देखत तव रचना विचित्र अति समुझि मनहिं मन रहिए ॥ १ ॥ सून्य भीति पर चित्र रङ्ग नहिं, कर विनु लिखा चितेरे धोए मिटर न मरड़ भीति, दुख पाइय यहि तनु हेरे ॥ २ ॥ रवि-कर-नीर बस अति दारु मकर रूप तेहि मांहीं बदन-हीन सो ग्रसड़ चराचर पान करन जे जाहीं कोउ कह सत्य झूठ कह कोऊ जुगल प्रबल करि मानै तुलसिदास परिहरै तीनि भ्रम जो आपछि पहिचानै