पृष्ठ:परमार्थ-सोपान.pdf/६७

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Pada 41 Incentives. (४) अनुवाद. हे केशव, कहा नहीं जाता | क्या कहा जाय तुम्हारी अति विचित्र रचना को देखकर मन ही मन समझ कर रहना पड़ता है । कर-हीन चितेरे ने शून्य भीत पर रङ्ग के बिना चित्र लिखा है, जो धोने से भी नहीं मिटता । ( फिर भी ) भीति नहीं मरती । इस तन को देखने से दुख प्राप्त होता है । रविकरनीर में अति दारुण मकररूप बसता है । वह मकर मुख- हीन होने पर भी चराचर में से जो कोई ( जल ) पीने जाता है, उसको खा लेता है । ( इस संसार को ) कोई सत्य कहता है, कोई असत्य कहता है । कोई सत्या- सत्य दोनों ही को तुल्यवल मानता है । तुलसीदास कहते हैं, कि जो अपने को पहिचानता है, वही तीनों भ्रमों को छोड़ सकता है । .