पृष्ठ:परमार्थ-सोपान.pdf/६९

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Pada 5] Incentives. ११ (५) अनुवाद. हे ऊधव, तुम्हारा व्यवहार धन्य है । वह स्वामी धन्य है ! वह सेवक धन्य है ! वर्तनेवाले तुमभी धन्य हो ! (तुम) आम कटाते हो, बबूल लगाते हो और चन्दन को भाड़ में झोंकते हो । चोर को बसाते हो । साह को भगाते हो और चुगलखोरों का विश्वास करते हो । हे ऊधो ! हम ग्रामीण व्रज- स्त्रियाँ हैं, ( कथनी करनी, रहनी ) हमारी समझ में सूरदास कहते हैं, तुम्हारी कचहरी धन्य हैं, अंधाधुंध लग रहा है । तुम्हारी विद्या नहीं आती है । जहाँ दरबार