पृष्ठ:परमार्थ-सोपान.pdf/७५

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Pada 81 Incentives. १७ (८) अनुवाद ममता ! तू मेरे मन से नहीं गई । जन्म के साथी मेरे केश पक गए । लोगों से मेरी लज्जा चली गई । तन थक गया । हाथ काँपने लगे । नेत्रों से ज्योति निकल गई । श्रवण किसी के वचन नहीं सुनते । इन्द्रियों का बल चला गया । दाँत टूट गये । कफ, पित्त, और वात कण्ठ पर बैठ गए हैं । सुत को हाथ से बुलाता हूँ । परम प्यारे भाई, बन्धुजन और नारी घर से निकाल रहे हैं । जैसे शशिमण्डल की स्याही कोटि यत्न से भी नहीं छूटती • ( उसी प्रकार ममता मेरे मन से अब भी नहीं गई ) | . तुलसीदास तुम्हारे उन चरणों की बलि जाता है, जो विषयों के लोभ को परास्त करते हैं ।