पृष्ठ:परमार्थ-सोपान.pdf/८४

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२६ परमार्थसोपान [ Part Î Ch. 1 13. HELPLESSNESS IN LIFE'S EXPERIENCE. मुनि वसिष्ट से पण्डित ज्ञानि, करम गति ढारै नाहिं टरी सोधि के लगन धरी । ॥ टेक ॥ सीता हरन मरन दसरथ को, वन में विपति परी 11 2 11 कहूँ वह फन्द कहाँ वह पारथि, कहँ वह मिरग चरी । कोटि गाय नित पुन्य करत नृग, गिरगिट जोन परी ॥२॥ पाण्डव जिनके आप सारथी, तिन पर विपति परी ।

कहत कबीर सुनो भाई साधो, होनी होके रही ॥ ३ ॥