पृष्ठ:परमार्थ-सोपान.pdf/९०

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ફર परमार्थसोपान [ Part 1 Ch. 2 CHAPTER 2 The Necessity Of Moral Preparation. 1. AVOIDANCE OF THE UNGODLY. छाँड़ि मन हरि - विमुखन को संग || टे ॥ जिनके संग कुबुधि उपजति है, परत भजन में भंग 11211. कहा होत पय पान कराए, विप नहिं तजत भुजंग ॥२॥ काहि ँ कहा कपूर चुगाए, स्वान न्हवाए गंग खर को कहा अरगजा लेपन, मरकट भूपन अंग गज को कहा न्हवाएं सरिता, | बहुरि खेह धरै अंग पाहन पतित बान नहिं वेधत, रीतो करत निपंग सूरदास खल कारी कामरी, ॥ ३ ॥ 11811 ॥५॥' 11 & 11 चढ़त न दूजो रंग ॥७॥