पृष्ठ:परमार्थ-सोपान.pdf/९२

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રૂંછું परमार्थसोपान [ Part 1 Ch. 2 2. I AM THE KING OF VICES DESTROY MY EVIL PROPENSITIES. O' LORD ! अब मैं नाच्यों बहुत गुपाल ॥ टे ॥ काम क्रोध को पहिरि चोलना, कण्ठ विषय की माल महामोह के नूपुर बाजत, निन्दा शब्द रसाल । भरम भन्यो मन भयो पखावज, चलत कुसंगत चाल तुस्ता नाद करत घट भीतर, नाना विधि दे ताल | 112 11 113 11 माया को कटि फेंटा बाँध्यो, लोभ तिलक दै भाल 11 3 11 कोटि कला काँछि देखराई, जल थल सुधि नहिं काल । सूरदास की सबै अविद्या, दूर करो नंदलाल 11811