पृष्ठ:परमार्थ-सोपान.pdf/९३

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Pada 2] Moral Preparation. ३५ 1 (२) अनुवाद. हे गोपाल, आज तक मैं बहुत नाच चुका । (मैंने ) काम और क्रोध का चोला पहन कर गले में विपयों की माला डाल ली । महामोह के घुँघरू बज रहे हैं । निन्दा के रसीले शब्द उठते हैं । भ्रम से भरा हुआ मन रूपी पखावज बज रहा है । और बुरी संगत वालों की चाल चलता है । अन्तःकरण में तृष्णा अनेक प्रकार से ताल देकर नाद कर रही है । कमर में माया का फेंटा लपेटा है और भाल पर लोभ का तिलक दिया है । नट के अभिनय वेश में करोड़ों कलाएँ प्रदर्शित की हैं। जल, स्थल और काल की स्मृति नहीं रही। सूरदास कहते हैं, कि हे नन्दलाल, मेरी सब अविद्या दूर करो ।