पृष्ठ:परिवार, निजी सम्पत्ति और राज्य की उत्पत्ति.djvu/१०

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लिखी थीं, वे मेरे सामने मौजूद है और उनको मैंने, जहां भी सम्भव हो सका है, उद्धृत किया है।

भौतिकवादी धारणा के अनुसार, इतिहास में अन्ततोगत्वा निर्णायक तत्त्व तात्कालिक जीवन उत्पादन और पुनरुत्पादन है। परन्तु यह ख़ुद दो प्रकार का होता है। एक ओर तो, जीवन-निर्वाह के, भोजन, परिधान तथा आवास के साधनों तथा इन चीज़ों के लिये आवश्यक औज़ारों का उत्पादन होता है और, दूसरी ओर, स्वयं मनुष्यों का उत्पादन, यानी जाति-प्रसारण होता है। किसी विशेष ऐतिहासिक युग तथा किसी विशेष देश के लोग जिन सामाजिक व्यवस्थाओं के अन्तर्गत रहते हैं, वे इन दोनों प्रकार के उत्पादनों से, अर्थात् एक और श्रम के विकास की अवस्था और दूसरी ओर परिवार के विकास की अवस्था से निर्धारित होती है। श्रम का विकास जितना ही कम होता है, तथा श्रम-उत्पादन की मात्रा जितनी ही कम होती है, और इसलिये समाज की सम्पदा जितनी ही सीमित होती है, समाज-व्यवस्था में रक्त-सम्बन्धों का प्रभुत्व उतना ही अधिक जान पड़ता है। लेकिन रक्त-सम्बन्धों पर आधारित इस समाज-व्यवस्था के भीतर श्रम की उत्पादन-क्षमता अधिकाधिक बढ़ती जाती है, उसके साथ निजी सम्पत्ति और विनिमय बढ़ते हैं, धन का अन्तर बढ़ता है, दूसरों की श्रम-शक्ति को इस्तेमाल करने की सम्भावना बढती है, और वर्ग-विरोधों का आधार तैयार होता है। नये सामाजिक तत्त्व बढ़ते हैं जो कई पीढ़ियों के दौरान समाज की पुरानी व्यवस्था को नयी अवस्थाओं के अनुकूल ढालने की कोशिश करते हैं, यहां तक कि अन्त में दोनों के बेमेल होने के कारण एक पूर्ण क्रान्ति हो जाती है। रक्त-सम्बन्धों पर आधारित पुराना समाज नव-विकसित सामाजिक वर्गों की टक्करों में ध्वस्त हो जाता है; उसकी जगह राज्य के रूप में संगठित एक नया समाज ले लेता है, जिसकी नीचे की इकाइयां रक्त-सम्बन्धों पर आधारित जन-समूह नहीं, बल्कि क्षेत्रीय जन-समूह होती है जिसमें पारिवारिक व्यवस्था पूरी तरह सम्पत्ति की व्यवस्था के अधीन होती है, और जिसमें वे वर्ग-विरोध तथा वर्ग-संघर्ष अब खूब खुलकर बढ़ते हैं, जो अब तक के समस्त लिखित इतिहास की विषयवस्तु हैं।

मोर्गन की महानता इस बात में है कि उन्होंने मोटे रूप में हमारे लिखित इतिहास के इस प्रागैतिहासिक आधार का पता लगाया और उसका

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