भी यही बात सही है। इसलिये उसकी चर्चा हम अधिक संक्षेप में कर सकते है। कम से कम नगर के अति प्राचीन काल मे रोमन गोत्र का निम्नलिखित सघटन था १. एक दूसरे की सम्पत्ति विरासत मे पाने का गोत्र के सदस्यो को पारस्परिक अधिकार था। मम्पत्ति गोन के भीतर ही रहती थी। यूनानी गोन की तरह रोमन गोत्र में भी चूकि पितृ-सत्ता कायम हो चुकी थी, इसलिये मातृ-परम्परा के लोग इम अधिकार से अलग रखे जाते थे। बारह पट्टिकानोंवाले कानून 118 के अनुसार, जिससे अधिक पुराने रोम के किसी लिखित कानून को हम नहीं जानते , जायदाद पर सबसे पहले मृत व्यक्ति की प्राकृत सन्तान का दावा होता था। यदि किसी व्यक्ति की प्राकृत सन्तान नहीं होती थी तो सम्पत्ति “एग्नेटों" को ( पानी पितृ-परम्परा के रक्त- सम्बन्धियो को ) मिलती थी। “एग्नेटो" के न होने पर सम्पत्ति पर मृत व्यक्ति के गोत्र के सदस्यो का अधिकार होता था। हर हालत में सम्पत्ति गोन के भीतर ही रहती थी। यहां हम देखते है कि धन-दौलत के वढ जाने तथा एकनिष्ठ विवाद की प्रथा के प्रचलित हो जाने के कारण गोन- व्यवस्था के व्यवहार मे धीरे-धीरे कुछ नये कानूनो और नियमों का प्रयोग होने लगता है। पहले गोन के सभी सदस्यो का मृत व्यक्ति की सम्पत्ति पर समान अधिकार होता था। फिर व्यवहार में यह अधिकार “एग्नेटो" तक ही सीमित कर दिया गया। यह शायद बहुत समय पहले की बात है , जैसा कि ऊपर कहा जा चुका है। बाद मे यह अधिकार केवल मृत व्यक्ति की सन्तान तथा उनके पुरुष वशजो तक ही सीमित रह गया। पर जाहिर है कि बारह पट्टिकामो में उत्तराधिकार की यह व्यवस्था विपरीत क्रम में दिखायी देती है। २. हर एक गोत्र का अपना सामूहिक क़ब्रिस्तान होता था। जब क्लौडिया नामक कुलीन गोत्र रेगिली से रोम में बसने के लिये आया तो उसको शहर में जमीन का एक टुकड़ा और एक सामूहिक कनिस्तान मिला। पौरस्तस के काल मे भी जब ट्यूटोवर जंगल मे वारस मारा गया तो उसके सिर को रोम में लाकर gentilitius turmulus* में दफनाया गया , 117 . गोत्र का कब्रगाह।-सं० १५५
पृष्ठ:परिवार, निजी सम्पत्ति और राज्य की उत्पत्ति.djvu/१५३
दिखावट