. . वस्तियों में जमकर रहते हुए पूरी एक रादी हो चुकी थी। इससे जीवन निर्वाह के साधनों के उत्पादन में जो उन्नति हुई, वह निर्विवाद है। ये लोग लकड़ी के लट्ठो के बने मकानों में रहते थे ; उनके कपड़े अभी तक मादिम जंगलियों के ढंग के थे। वे मोटे ऊनी लवादे और जानवरों की खालें पहनते थे। स्त्रियां और अभिजात लोग अंतर्वस्त्र के लिये लिनेन का प्रयोग करते थे। इन लोगों का भोजन था दूध, मांस , जंगली फल और जैसा कि प्लिनी ने बताया है , जई का दलिया (जो आज भी आयरलैंड तथा स्काटलैंड में केल्ट लोगों का जातीय भोजन बना हुग्रा है)। उनका धन उनके मवेशी थे, पर उनकी नस्ल अच्छी नही थी-जानवर छोटे, बेढंगे और बिना सोगों के होते थे। उनके घोड़े छोटे-छोटे टटुरो जैसे होते थे जो तेज नही दौड़ सकते थे। मुद्रा बहुत कम थी और उसका यदा-कदा ही इस्तेमाल होता था और वह भी बहुत थोडी मात्रा मे। केवल रोमन मुद्रा ही चलती थी। वे लोग सोने या चांदी की चीजें नहीं बनाते थे, न वे इन घातुनों को कोई महत्त्व ही देते थे। लोहे की बहुत कमी थी, और कम से कम राइन तथा डेन्यूब नदियों के किनारे रहनेवाले कवीले , मालूम होता है, अपनी ज़रूरत का सारा लोहा बाहर से मंगाते थे और खुद खनन नहीं करते थे। रूनिक लिपि (जो यूनानी और लैटिन लिपि की नकल थी) एक गूढ़ संकेत-लिपि के रूप में महज़ धार्मिक जादू-टोने के लिये इस्तेमाल होती थी। मनुष्य-चलि की प्रथा अभी तक जारी थी। सारांश यह कि उस समय जर्मनों ने वर्वर युग की मध्यम अवस्था से हाल ही में निकलकर उन्नत अवस्था में प्रवेश किया था। जिन कबीलो का रोमवासियों से सीधा सम्पर्क कायम हो गया था और इसलिये जो आमानी से रोम की प्रौद्योगिक पैदावार का आयात कर सकते थे, वे इस कारण खुद धातु तथा कपड़े के उद्योगों का विकास नहीं कर पाये ; परन्तु इसमे तनिक भी संदेह नहीं हो सकता कि बाल्टिक सागर के तट पर रहनेवाले, उत्तर-पूर्व के कबीलों ने इन उद्योगों का विकास कर लिया था। श्लेजविग के दलदल में जिरहबख्तर के जो टुकड़े मिले है - लोहे की लम्बी तलवार, बस्तर, चांदी का शिरस्त्राण , आदि जो चीजें दूसरी सदी के अंत के रोमन सिक्को के साथ मिली है-और जातियों के प्रव्रजन से जर्मनों की वनायी हुई धातु की जो चीजें चारो ओर फैल गयी है, वे, और उनमें वे भी जो रोम की नकल है, एक अनोखे ढंग की और बहुत बढ़िया कारीगरी १८३
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