पृष्ठ:परिवार, निजी सम्पत्ति और राज्य की उत्पत्ति.djvu/२१०

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- के इन्तजाम की जमरत का घोतक भी। धन-दौला तेजी में बढ़ रही थी, पर यह अलग-अलग व्यक्तियों को धन-दौलत यो। युनाई, धातुकर्म और दूमरी दस्तकारियों का, हर एक का अपना अलग विशिष्ट स्प होता जा रहा था , और उनके मालो में अधिकाधिक सफाई, पूबसूरती मोर विविधता पाती जा रही यो। ती से अय न येवल अनाज , दाले और फल मिलने थे, बल्कि तेल और शगव भी मिलती थी-प्रय लोगो ने तेल निकालने और शराब बनाने को मला गौग्र ली थी.। अब कोई एक व्यक्ति इतने भिन्न प्रकार के काम नहीं कर सकता था; इसलिये अब दूसरा बड़ा धम- विभाजन हुमा : दस्तकारिया घेती से अलग हो गयी। उत्पादन में जो लगातार वृद्धि हो रही थी और उसके माथ-साथ श्रम की उत्पादन क्षमता में जो बढ़ती हो गयी थी, उसने मानव श्रम-शक्ति का मूल्य बढा दिया । दाम- प्रथा, जो पिछली मजिल में प्रकुरित हो रही थी और केवल कही- काही पायी जाती थी , अब समाज-व्यवस्था का एक प्रावश्यक अंग बन गयी ! दास अव महज सहायक नहीं रह गये, बल्कि उन्हें धोसियो की संख्या में खेती भोर कारखानो मे काम करने के लिये हाका जाने लगा। उत्पादन के खेती तथा दस्तकारी, इन दो बड़ी शाखामो में बंट जाने के कारण अब विनिमय के लिये उत्पादन, माल का उत्पादन होने लगा। उसके साथ-साथ न सिर्फ अपने इलाके के अदर, न सिर्फ विभिन्न कवीलो के इलाको की सीमानो पर, बल्कि समुद्र पार भी व्यापार होने लगा। इस सब का अभी बहुत कम विकास हुअा था ; सार्वजनिक मुद्रा का काम करनेवाले माल के रूप मे बहुमूल्य धातुनो का पहले से अधिक प्रयोग होने लगा था, अभी वे सिक्कों के रूप मे नही ढाली जाती थी और केवल तौलकर उनका विनिमय होता था। अब स्वतंत्र लोगो तथा दासो के भेद के साथ-साथ अमीर और गरीब का भेद भी जुड़ गया था। नये श्रम-विभाजन के साथ समाज नये सिरे से वर्गों में बंट गया था। जहा कहीं पुराने आदिम सामुदायिक कुटुम्ब अभी तक कायम थे, वहां वे विभिन्न परिवारो के अलग-अलग मुखियाप्रो के पास कम-ज्यादा धन होने के कारण टूट गये और इससे पूरे समुदाय द्वारा मिलकर खेती करने की प्रथा खतम हो गयी। खेती की जमीन अलग-अलग परिवारो में इस्तेमाल के लिये बांट दी गयो-पहले वह एक निश्चित अवधि के लिये बाटी जाती थी, फिर सदा के लिये बाट दी गयी। पूरी तरह निजी सम्पत्ति २१०