बल्कि खुद में से उखाड दी गयी और पूरी गोन-व्यवस्था अपने से एक विलकुल उल्टी चीज मे वदल गयी। अपने मामलों की स्वतंत्र रूप से खुद व्यवस्था करनेवाले कबीलों के संगठन से अब वह एक ऐसा संगठन बन गया जो पड़ोसियो को लूटने और सताने के लिये था। और तदनुरूप ही उसके निकाय जनता की इच्छा को कार्यान्वित करने का साधन नही रह गये, अपनी जनता पर शासन करने और अत्याचार करनेवाले स्वतन निकाय बन गये। यह कभी न होता यदि धन का लालच गोत्र के सदस्यों को अमीरों और ग़रीबों में न वाट देता, यदि गोन के भीतर सम्पत्ति के भेद हितो की एकता को गोन के सदस्यों के आपसी विरोध न बदल देते" (मास) 160, और यदि दास-प्रथा की वृद्धि के कारण जीविका कमाने के लिये मेहनत करना गुलामों का और लूट-मार से भी ज्यादा शर्मनाक काम न ममझा जाने लगता। ( अब हम सभ्यता के द्वार पर पहुंच जाते हैं। श्रम-विभाजन मे और भी नयी प्रगति के साथ इस युग का श्रीगणेश होता है। बर्बर युग की निम्न अवस्था मे मनुष्य केवल सीधे-सीधे अपनी जरूरतो के लिये पैदा करता था, विनिमय केवल कही-कही पर होता था जहा कि अचानक अतिरिक्त पैदावार हो जाती थी। बर्बर युग की मध्यम अवस्था मे हम पाते हैं कि पशुपालक कबीलो के पास पशुधन के रूप में एक ऐसी सम्पत्ति हो जाती है, जो काफी बड़ा रेवड़ या गल्ला होने पर नियमित रूप से उनकी जरूरतो से ज्यादा पैदावार उन्हे देती है। साथ ही हम यह भी पाते है कि पशुपालक कबीलो तथा उन पिछडे हुए कबीलों के बीच , जिनके पास पशुओं के रेवड नही होते , श्रम का विभाजन हो जाता है। इस तरह उत्पादन को दो भिन्न अवस्थाये साथ-साथ चलती है, जिससे नियमित रूप से विनिमय होने के लिये. परिस्थितियां तैयार हो जाती है। वर्वर युग को उन्नत अवस्था माने पर श्रम का एक और विभाजन हो गया-खेती तथा दस्तकारी के बीच विभाजन , जिससे अधिकाधिक वढते हुए परिमाण मे, विशेष रूप से विनिमय करने के लिये, मालो का उत्पादन होने लगा। इस तरह अलग-अलग उत्पादको के बीच विनिमय उस अवस्था में पहुंच गया जहा वह समाज के लिये नितान्त आवश्यक बन गया। सभ्यता के युग ने पहले से स्थापित श्रम- विभाजन को और सुदृढ ,किया तया आगे बढ़ाया , खाम तौर पर शहर २१२